“दोहा डील: गोली नहीं, अब गले मिलने की तैयारी!”

हुसैन अफसर
हुसैन अफसर

दोहा की गर्म हवा में गोलियों की गूंज नहीं, बल्कि डिप्लोमैटिक हैंडशेक्स की आवाज़ आई। पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के प्रतिनिधियों ने एक ऐसे समझौते पर दस्तखत कर दिए हैं जो सुनने में तो शांति की घंटी जैसा लगता है – लेकिन क्या ये घंटी वाकई बजेगी या सिर्फ घुंघरू बजाकर चला जाएगा?

विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने Twitter (या X) पर पोस्ट करके खुशी जताई – “क़तर और तुर्की शुक्रिया, हमने पहला कदम बढ़ा लिया है। अब देखिए ये Process किस स्टेशन पर जाकर रुकती है।” डार साहब ने साथ ही उम्मीद जताई कि अफ़ग़ानिस्तान से पाकिस्तान में आ रहे “आतंकवाद” के एक्सप्रेस रूट पर अब रेड सिग्नल लगेगा।

तालिबान बोले: हम सुधर गए हैं!

तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने भी डील पर मोहर लगाई। उन्होंने कहा – “अब ना हम उनके नागरिकों को छेड़ेंगे, ना उनके फौजियों को देख कर ट्रिगर दबाएंगे। Mutual Respect के साथ हम पड़ोस निभाएंगे।”

कहा गया है कि दोनों पक्ष अब न तो एक-दूसरे के खिलाफ़ हमलों को समर्थन देंगे और न ही ‘घुसपैठिया आतंकी टूरिज़्म’ को प्रमोट करेंगे।

समझौते का स्ट्रक्चर: बिना झगड़े के भी बात चलेगी!

इस पूरी वार्ता में क़तर और तुर्की बने हैं भाई-बंदी के मेंटर। उन्होंने ऐसा एक Monitoring Mechanism बनाने की बात की है जो दोनों देशों के झगड़ों की समीक्षा करेगा।
Translation: “जब कोई बोले – उसने मेरी ज़मीन देखी थी ग़लत निगाह से”, तब ये मेकनिज़्म कहेगा – “चलो, बैठो और बात करो।”

आख़िरी सवाल: क्या ये डील चलेगी या फिर WhatsApp ग्रुप की तरह साइलेंट हो जाएगी?

इतिहास तो यही कहता है कि पाकिस्तान-अफ़ग़ान रिश्तों में Unfriend और Block वाला बटन जल्दी दबता है। मगर इस बार टेबल पर बात है, और बिच में क़तर-तुर्की जैसे शांतिदूत बैठे हैं।

मतलब: शादी की बात तो चल गई है, अब देखना है बारात कब निकलती है और दहेज में शांति मिलती भी है या नहीं।

“दोहा डील पर जश्न मनाइए, पर पास में हेलमेट रखिए – क्योंकि रिश्तों में कभी भी ‘धमाका ऑफर’ आ सकता है!”

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